हमारे समाज में मां को सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है। वह अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती है। लेकिन जब बात संपत्ति की आती है, तो अक्सर मां को पीछे कर दिया जाता है। लोगों को लगता है कि बेटे की शादी हो गई है, अब उसके घर की मालकिन बहू है। मगर सच्चाई क्या है? क्या मां का कोई कानूनी हक नहीं है? आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
बेटा कुंवारा हो या शादीशुदा – मां का हक बरकरार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार बेटे की संपत्ति में मां का कानूनी अधिकार होता है। अगर बेटा वसीयत छोड़कर नहीं गया है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो मां को संपत्ति में उत्तराधिकारी माना जाता है।
यानी बेटा चाहे कुंवारा हो या शादीशुदा, मां उसका कानूनी उत्तराधिकारी बनी रहती है।
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अविवाहित बेटे की संपत्ति – सबसे पहले मां को मिलेगा हक
अगर बेटा अविवाहित था और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति की सबसे पहली हकदार उसकी मां होती है। यह कानून की पहली श्रेणी (Class I heirs) में आता है।
यदि मां नहीं हैं, तो पिता को हक मिलता है। और अगर माता-पिता दोनों नहीं हैं, तब भाई-बहन आदि को यह संपत्ति मिलती है।
शादीशुदा बेटे की संपत्ति – बराबरी का बंटवारा
अगर बेटा शादीशुदा है और उसकी मृत्यु वसीयत के बिना हो जाती है, तो उसकी संपत्ति तीन हिस्सों में बांटी जाती है:
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पत्नी (बहू)
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मां
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और बच्चे
इसका मतलब ये हुआ कि मां को उतना ही हिस्सा मिलेगा जितना बहू या बच्चों को। मां को अलग नहीं किया जा सकता।
अगर बेटा वसीयत बनाकर गया है?
अगर बेटे ने वसीयत बनाकर अपनी संपत्ति किसी और के नाम कर दी है और मां को कुछ नहीं दिया, तो मां अदालत में उस वसीयत को चुनौती दे सकती है।
कोर्ट यह देखेगा कि क्या मां को जानबूझकर संपत्ति से बाहर रखा गया। यदि ऐसा पाया गया, तो वसीयत को खारिज किया जा सकता है और मां को उसका हिस्सा दिलवाया जा सकता है।
मां खुद क्यों पीछे हट जाती हैं?
कई बार देखा गया है कि मां अपना हक नहीं मांगतीं। उन्हें डर रहता है कि बहू-बेटे या पोते-पोतियों से रिश्ते खराब हो जाएंगे।
कुछ मांएं सोचती हैं कि अब इस उम्र में क्या कोर्ट-कचहरी करना। लेकिन अगर मां जागरूक हो और कानूनी कदम उठाएं, तो उन्हें उनका अधिकार जरूर मिल सकता है।
समाज की सोच में बदलाव जरूरी
अक्सर शादी के बाद बेटा अपनी पत्नी के करीब हो जाता है और मां को धीरे-धीरे नजरअंदाज कर दिया जाता है। समाज में यह सोच बदलनी चाहिए।
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मां ने जिस बेटे को पाल-पोस कर बड़ा किया, उसका हक सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि कानूनी और आर्थिक भी है। अगर मां को प्यार देते हैं, तो संपत्ति में हक भी देना चाहिए।
मां को जागरूक होना होगा
आजकल संपत्ति को लेकर विवाद आम हो गए हैं। ऐसे में जरूरी है कि मांएं अपने अधिकारों को जानें और समय पर कदम उठाएं।
पंचायतों, स्कूलों, महिला संगठनों और सोशल मीडिया के जरिए जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। महिलाएं चुप न रहें, अपने हक के लिए आवाज उठाएं।
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निष्कर्ष: मां का हक है तो मिलना चाहिए
बेटे की संपत्ति पर मां का पूरा हक होता है, चाहे बेटा अविवाहित हो या शादीशुदा। कानून भी मां के पक्ष में है, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब मां खुद अपने अधिकारों के लिए आगे आएंगी।
भावनाएं अपनी जगह हैं, लेकिन जब बात हक की हो, तो मां को उसका हिस्सा जरूर मिलना चाहिए। जब मां मजबूत होंगी, तभी परिवार भी मजबूत होगा।